देशभर में 24 राज्यों के प्राइमरी और सेकेंडरी स्कूलों में से मौजूदा नो-डिटेनशन व्यवस्था को हटाया जा रहा है। इसके लिए सरकार की मंजूरी भी मिल गई है और 2018 से इस व्यवस्था को अपना लिया जाएगा।
शिक्षा के अधिकार के तहत राज्यों को अधिकार है कि वे बच्चों के शैक्षिक स्तर को सुधारने के लिए 'परीक्षा मूल्याकंन व्यव्स्था' को वापस ला सकते हैं। मौजूदा नियम के तहत पहली से आठवीं तक बच्चों को बिना किसी परीक्षा मूल्यांकन के अगली कक्षा में भेज दिया जाता है। तमिलनाडू, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना और महाराष्ट्र इन 24 राज्यों में शामिल नहीं है।
वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक, नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा अधिनियम के तहत आठवीं तक बच्चों को पास करने वाली नीति से 9वीं में बच्चों के फेल होने का प्रतिशत बढ़ गया है। लेकिन व्यव्स्था में परिवर्तन करते हुए 2018 से पांचवीं और आठवीं कक्षा में साल में दो बार परीक्षा होंगी।
नियम के तहत जो छात्र मार्च की फाइनल परीक्षा में फेल हो जाएगा उसे मई में दोबारा मौका दिया जाएगा। अगर वह फिर भी फेल हो जाता है तो उसे उसी क्लास में वापस बैठा दिया जाएगा। जानकारी के मुताबिक ग्याहरवीं क्लास में फेल होने का भी प्रतिशत बढ़ा है जिसका कारण पिछली कक्षाओं में गुणात्मक और मात्रात्मक शिक्षा की कमी को बताया जा रहा है।
बता दें कि दसवीं की बोर्ड की परीक्षा वेकल्पिक है। लेकिन 2018 से इस व्यव्स्था को भी बदलने की तैयारी की जा रही है। इससे पहले यह सोचा गया था कि सतत तथा व्यापक मूल्यांकन (सीसीई) प्रणाली के कार्यान्वयन के तहत छात्रों को लगातार कक्षा एक से मूल्यांकन कर अगली क्लास में भेजा जाएगा और परीक्षा करवाने की कोई आवश्यकता नहीं होगी।
लेकिन बच्चों के लगातार गिरते शैक्षिक स्तर को देखते हुए ऐसा नहीं किया गया है। क्योंकि इसमें अध्यापक भी बच्चों पर ज्यादा ध्यान नहीं दे रहे हैं। 24 राज्यों ने स्पष्ट रूप से दो समितियों के पास अपनी सिफारिशे रखी जो केंद्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड द्वारा अपना ली गई है।
शिक्षा के अधिकार के तहत राज्यों को अधिकार है कि वे बच्चों के शैक्षिक स्तर को सुधारने के लिए 'परीक्षा मूल्याकंन व्यव्स्था' को वापस ला सकते हैं। मौजूदा नियम के तहत पहली से आठवीं तक बच्चों को बिना किसी परीक्षा मूल्यांकन के अगली कक्षा में भेज दिया जाता है। तमिलनाडू, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना और महाराष्ट्र इन 24 राज्यों में शामिल नहीं है।
वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक, नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा अधिनियम के तहत आठवीं तक बच्चों को पास करने वाली नीति से 9वीं में बच्चों के फेल होने का प्रतिशत बढ़ गया है। लेकिन व्यव्स्था में परिवर्तन करते हुए 2018 से पांचवीं और आठवीं कक्षा में साल में दो बार परीक्षा होंगी।
नियम के तहत जो छात्र मार्च की फाइनल परीक्षा में फेल हो जाएगा उसे मई में दोबारा मौका दिया जाएगा। अगर वह फिर भी फेल हो जाता है तो उसे उसी क्लास में वापस बैठा दिया जाएगा। जानकारी के मुताबिक ग्याहरवीं क्लास में फेल होने का भी प्रतिशत बढ़ा है जिसका कारण पिछली कक्षाओं में गुणात्मक और मात्रात्मक शिक्षा की कमी को बताया जा रहा है।
बता दें कि दसवीं की बोर्ड की परीक्षा वेकल्पिक है। लेकिन 2018 से इस व्यव्स्था को भी बदलने की तैयारी की जा रही है। इससे पहले यह सोचा गया था कि सतत तथा व्यापक मूल्यांकन (सीसीई) प्रणाली के कार्यान्वयन के तहत छात्रों को लगातार कक्षा एक से मूल्यांकन कर अगली क्लास में भेजा जाएगा और परीक्षा करवाने की कोई आवश्यकता नहीं होगी।
लेकिन बच्चों के लगातार गिरते शैक्षिक स्तर को देखते हुए ऐसा नहीं किया गया है। क्योंकि इसमें अध्यापक भी बच्चों पर ज्यादा ध्यान नहीं दे रहे हैं। 24 राज्यों ने स्पष्ट रूप से दो समितियों के पास अपनी सिफारिशे रखी जो केंद्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड द्वारा अपना ली गई है।
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